ये काल,
किसे कब छोड़ता है ?
न तुझे छोड़ता है,
न मुझे छोड़ता है।
राजा हो रंक,
सभी को छेंडता है।
ये काल,
किसे कब छोड़ता है ?
तमन्ना की लौ,
जल गई जिंदगी में।
हसरत के फूल,
खिल गए बागवां में।
करो रोशनी,
लौ जलाओ जहां में।
तमन्नाए जीवन,
चरागे बनाओ।
लड़ो काल से,
उसे तुम हराओ।
जहां जिंदगी है,
वहीं मृत्यु आए।
समझ के रहो,
निडर हो के खेलो।
ना जीवन से हारो,
ना मृत्यु से भागो।
वरन कर लो जीवन,
वरन करना ही होगा।
वरन कर लो मृत्यु,
वरन करना ही होगा।
समय से पहले,
करो ना ये कोशिश।
नहीं तो होगा,
ये अत्मविनाश।
क्या पता,
की अगले जन्म में ?
ना आयेंगे,
जीवन में ऐसे हालात।
आत्मवध की,
कोई निश्चितता नहीं है।
ना आयेंगे संकट,
अगले जनम में।
ना होगा प्यार,
ना टूटेगा दिल।
ना होगी खटपट,
ना होगी रुशवाई।
चाहे,
नदी में लगाओ छलांग।
छत से,
कूदो धड़ाम।
लगा लो,
रस्सी गले में तमाम।
पंखे से बाधो,
रस्सी से लटको।
खिड़की से कूदो,
पटरी पे लेटो।
लौह गामी से,
कट लो।
अग्नि में,
दहन कर लो।
मृत्यु से,
होगा ना कोई उपकार।
स्वघात से,
होगा ना कोई उपाय।
हर हालात में,
जीने का करो प्रयास।
करो आत्मबध,
करो स्वघात।
लेना ही होगा,
जीवन का साथ।
मरने की राह पे,
जीवन खड़ा है।
जीवन ही तो,
मृत्यु से लड़ा है।
दोनों की,
गलबहियां हाेती रही हैं।
ना जीवन,
कभी हारा।
ना मृत्यु,
कभी जीत पाई।
जीवन का पलड़ा,
हमेशा है भारी।
कितना भी कर लो,
मृत्यु से लुगाई।
जद्दोजहद से,
ना कोई है भागा।
करो आत्ममंथन,
करो आत्मचिंतन।
यहां से जाकर,
यहीं फिर है आना।
बिना जी लिए,
क्यों जाते हो प्यारो।
थोड़ा सा संभलो,
थोड़ा सा ठहरो।
ये जीवन ही देगा,
नया सवेरा।
सराबोर,
नई रोशनी से करेगा।
होगा तुम्हारी,
कर्मा से भेंट।
लोगे सभी,
संकटों को लपेट।
दहन कर दो उसको,
जो उसकाए स्वघात।
बलि दे दो उसकी,
जो प्रेरित करे आत्मवध।
लंका जला दो उनकी,
जो प्रेरक बनें आत्मविनाश की।
- महेंद्रकुमार सिंह
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