शहर मेरा है महानगर
पर शहरी नहीं शरीफ यहां।
लोग बाग हैं आते सब
वो होते नहीं अमीर यहां।
अगर वो होते रौबदार
यहां न आते बरखुरदार।
दर दर की ना करते चाकरी
न होते इतने मजबूर यार।
देखो शहर के बाजार में
हैं बैठे कितने लोग।
लगाए अपनी अपनी दुकान
सजाए करीने से सब भोग।
देखो शहर के बाजार में
मारा गया किसान।
शहर के सानों शौकत में
लग गया है हर इंसान।
देखो शहर के बाजार में
मिलती है सब चीज।
काश गेहूं नहीं पैदा होता यहां
नहीं तो मर जाता बेचारा किसान गरीब।
- महेंद्रकुमार सिंह
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