चले आ रहे हैं,चले जा रहे हैं
पर नजरें मिलाने से कतरा रहे हैं।
हजारों दिलों की ये धड़कन हैं यारो,
हजारों को यारों ये धड़का रहे हैं।
एक ही हसीना से पाला पड़ा जब,
हमे भी अब वो समझा रहे हैं
रातों की नीदें, ना दिन को है चैन,
ना जाने ये सब उड़ के कहां जा रहे हैं।
ये समझे हैं खुद को, क्या समझा रहे हैं,
बड़े बे आबरू से क्यों पेश आ रहे हैं।
तलक्कुफ ना देते, ना नजरें मिलाते,
तो क्या कुछ गंवाते क्या कुछ ना पाते,
हमें आशिकी का सबक वो सिखाते,
खुदा की ही खातिर, इक जां तो बचाते।
कभी था मैं कातिल तो पकड़ा गया,
मारा गया और पीटा गया,
सजा उम्र कैदे मिली मुझको यारो
पड़ा सड़ रहा हूं मैं कारा दिवारे।
ये हैं की मुफ्त आ जा रहे हैं
सारे आम लोगों का खूं कर रहे हैं।
ना इनको सजा है ना इनकी पकड़,
ना कारा दिवारे, ना पुलिस के फेरे।
ये कैसा गज़ब है, ये कैसी व्यवस्था,
अब कोई आके मुझको ना समझा रहा है।
– ✍️✍️🌐 महेंद्रकुमार सिंह 🌐✍️✍️