जब दिल में ऊहापोह हो
क्या करूं क्या ना करूं।
जब दोस्त दोस्त ना रहे
क्या दुश्मनी सवार दूं।
जब प्यार प्यार ना रहे
क्या दिल से प्यार वार दूं।
जब पाप से पापी भला
तो क्या पाप को निवार लूं।
जब मंजिलें ना मिल सकें
तो क्या रास्ते बिगाड़ लूं।
जब हौंसले परास्त हों
तो मन को क्या मसोस लूं।
जब ना कोई मित्र हो
तो क्या खुद को मित्र मान लूं।
जब सही, सही ना रहे
तो क्या गलत अख्तियार लूं।
- महेंद्रकुमार सिंह
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